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कृषि विभाग

कपास की फसल को गुलाबी सुंडी से खतरा, कृषि विभाग ने जारी किया अलर्ट

कपास की फसल को गुलाबी सुंडी से खतरा, कृषि विभाग ने जारी किया अलर्ट

सिरसा। किसानों के लिए वरदान बनी कपास की खेती को गुलाबी सुंडी (Pink bollworm) का खतरा हो सकता है। हरियाणा राज्य में कृषि विभाग ने इसके लिए अलर्ट जारी किया है। सरकार ने कपास की खेती करने वाले सभी किसान भाईयों को गुलाबी सुंडी से कपास की फसल को बचाने के लिए निर्देश भी दिए हैं। पिछले दो साल से कपास की खेती किसानों के लिए सफेद सोना साबित हुई है। कपास ने किसानों को अच्छा मुनाफा दिया है। जिसके चलते किसानों में लगातार कपास की खेती के प्रति रुचि बढ़ रही है। अकेले सिरसा जिले में 2 लाख 10 हजार हेक्टेयर भूमि पर कपास की खेती की जा रही है।

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क्या है गुलाबी सुंडी?

- कपास की कलियों और बीजकोषों को क्षति का कारण गुलाबी सुंडी (इल्ली) पेक्टिनोफोरा गॉसिपिएला का लार्वा है। वयस्कों का रंग और आकार अलग-अलग होता है लेकिन आम तौर पर वे चित्तीदार धूसर से धूसर-भूरे होते हैं। वे दिखने में लंबे पतले और भूरे से होते हैं। अंडाकार पंख झालरदार होते हैं। करीब 4 से 5 दिन में लार्वा अंडे से बाहर निकल आते हैं। और तुरंत ही कपास की कलियों या बीजकोष में घुस जाते हैं। और फिर करीब 12 से 14 दिन तक फसल को खाता है।

कैसे करें गुलाबी सुंडी से बचाव?

1- जैविक नियंत्रण के अनुसार पेक्टिनोफोरा गॉसिपिएला से प्राप्त सेक्स फेरोमोन्स का संक्रमित खेत में छिड़काव करने से गुलाबी सुंडी की क्षमता और तादात कम होती है। 

2- रासायनिक नियंत्रण के अनुसार इन गुलाबी पतंगों को मारने के लिए क्लोरपाइरिफास, एस्फेंवैलेरेट या इंडोक्साकार्ब के कीटनाशक फार्मूलेशन का पत्तियों पर छिड़काव किया जा सकता है।

 3- कीट के लक्षणों को पहचानने के लिए नियमित कपास के पौधों पर निगरानी रखें।

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4- कपास की जल्द परिवक्व होने वाली वैरायटी का उपयोग करें, ताकि सीजन शुरू होने से पहले ही फसल की उपज मिल जाए। आमतौर पर गुलाबी सुंडी सीजन में ज्यादा जोर पकड़ती है।

5- कीटनाशक दवाओं का सावधानी से प्रयोग करें, ताकि कोई नुकसान न हो। 

6- कटाई के तुरंत बाद पौधों को नष्ट कर देना चाहिए। 

7- ध्यान रहे कि कभी भी दो रासायनिक पदार्थों को मिलाकर छिड़काव न करें। इससे फसल को नुकसान संभावना बढ़ जाती है। 8- अधिकांश तौर पर नीम आधारित दवाओं का इस्तेमाल करें। 

 ------- लोकेन्द्र नरवार

डीएसआर तकनीकी से धान रोपने वाले किसानों को पंजाब सरकार दे रही है ईनाम

डीएसआर तकनीकी से धान रोपने वाले किसानों को पंजाब सरकार दे रही है ईनाम

12 हजार हेक्टेयर जमीन में डीएसआर तकनीकी से धान की खेती करने का शासन ने दिया है लक्ष्य

चंडीगढ़।
पंजाब सरकार कृषि विभाग डीएसआर तकनीकी (डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस तकनीक) या सीधी बिजाई से धान की खेती करने वाले किसानों को ईनाम दे रही है। इस तकनीकी से धान की रोपाई करने से 35 फीसदी पानी की बचत होती है। जिसे ध्यान में रखते हुए शासन द्वारा पूरे राज्य के किसानों को 12 लाख हेक्टेयर जमीन में डीएसआर तकनीकी से धान की फसल करने का लक्ष्य दिया है। हालांकि अभी 77 हजार हेक्टेयर में ही डीएसआर तकनीकी से धान की खेती की जा रही है, जो लक्ष्य से काफी पीछे है। राज्य सरकार ने इस तकनीकी से धान की खेती करने वाले किसानों को प्रति एकड़ 1500 रुपए ईनाम देने की घोषणा की है।

बढ़ा दी गई है डीएसआर से खेती करने की तारीख

- कृषि विभाग ने धान की सीधी बुवाई करने के लिए पहले 30 जून तक का समय दिया था। लेकिन लक्ष्य से पीछे रहने के कारण इसकी तारीख अब 4 जुलाई कर दी गई है। जानकारी मिल रही है कि अभी इसका समय और बढ़ाया जाएगा। ताकि ज्यादा से ज्यादा जमीन पर डीएसआर तकनीकी से धान की फसल हो सके।

जानें क्या है डीएसआर तकनीकी?

- यहां किसानों को यह समझने की जरूरत है कि आखिर डीएसआर तकनीकी क्या है? डीएसआर तकनीकी में धान के बीज को सीधे खेत में लगाया जाता है। इसमें धान की नर्सरी बनाने की आवश्यकता नहीं होती है। जिसे प्रसारण बीज विधि (डीएसआर) कहा जाता है। इसके लिए खेत की जमीन समतल होनी चाहिए।

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'प्रसारण बीज विधि' के फायदे एवं नुकसान

- प्रसारण बीज विधि (डीएसआर) के तहत धान की फसल करने वाले किसानों के लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि इस विधि से खेती करने के कितने फायदे एवं नुकसान हैं।

फायदे

- डीएसआर तकनीकी से धान की फसल को सीधे ड्रिल किया जाता है। इससे पानी की 35% तक बचत होती है। इसमें बासमती किस्म के धान की अच्छी रोपाई होती है। इस विधि से धान की खेती करने पर सरकार से ईनाम दिया जा रहा है।

नुकसान

- डीएसआर तकनीकी से धान की फसल करने से खेत में खरपतवार होने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। धान रोपाई की अपेक्षा फसल लेट हो सकती है। किसानों के लिए पानी की सप्लाई भी बेहतर ढंग से करना मुश्किल हो सकता है। ------- लोकेन्द्र नरवार
कश्मीर में हुई पहली ऑर्गेनिक मार्केट की शुरुआत, पौष्टिक सब्जियां खरीदने के लिए जुट रही है भारी भीड़

कश्मीर में हुई पहली ऑर्गेनिक मार्केट की शुरुआत, पौष्टिक सब्जियां खरीदने के लिए जुट रही है भारी भीड़

ऑर्गेनिक मार्केट के शुरुआत के ही दिनों में लोगों की काफी भीड़ यहां जुटने लगी है. आश्चर्य ये है कि बाजार में बिक्री शुरू होने के कुछ घंटों में ही काउंटर खाली हो जा रहे हैं. श्रीनगर: हर जगह इस समय जैविक खाद्य पदार्थ या आम भाषा में कहें तो ऑर्गेनिक फूड (Organic Food) की मांग लगातार बढ़ती जा रही है. इसी कारण कश्मीर कृषि विभाग ने ऑर्गेनिक फूड की मांग को देखते हुए श्रीनगर में ऑर्गेनिक बाजार की शुरुआत की है, जिसमें सिर्फ ऑर्गेनिक सब्जियां और फल बेचे जा रहे हैं. यह बाजार कृषि कार्यालय में लगाया जा रहा है और शुरुआत के ही दिनों में यहाँ लोगों की भीड़ जुटने लगी है. आश्चर्य की बात यह है कि बाजार में बिक्री शुरू होने के कुछ घंटों के अंदर ही काउंटर खाली हो जाते हैं.

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क्रेता फैसल अली कहते हैं कि हमें यहाँ अब पुराने जमाने के जैसा अनुभव होत्ता है . बिना किसी खाद और कीटनाशक का भोजन. हम यहाँ पहली बार आए हैं और यह बजार और भी विकसित होगा इसकी हम उम्मीद कर रहे हैं.

साधारण खेत को ऑर्गेनिक बनाने में लगता है 3 साल का समय

कश्मीर के कृषि कहते हैं कि हमने तीन साल पहले खेतो को ऑर्गेनिक करने का कार्यक्रम शुरू किया था. उन्होंने बताया कि किसी भी साधारण खेत को ऑर्गेनिक रूप में बदलने के लिए लगभग तीन साल का समय लग जाता है तब जा कर चौथे वर्ष में उस खेत को ऑर्गेनिक माना जाता है.

ऑर्गेनिक खेती से किसानों को मिल रहा है बेहतर लाभ

किसान जावेद अली कहते हैं कि हम फसलों को उगाने के लिए किसी भी तरह का केमिकल, फर्टिलायजर उपयोग नहीं करते हैं. महंगी खाद की जगह हम इसमें प्राकृतिक खाद का उपयोग करते हैं और इसका हमें बेहतर लाभ भी मिलता है. उन्होंने बताया कि फल और सब्जियों की बिक्री कर के वो रोजाना लगभग 500 रुपये तक कमा लेते हैं.

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कश्मीर में 1100 हेक्टर भूमि है ऑर्गेनिक खेती के लिए उपलब्ध

कश्मीर में अभी तक 1100 हेक्टर भूमि ऑर्गेनिक खेती के लिए उपलब्ध है, जिसमें 300 हेक्टर को सर्टिफाइड किया गया है. कश्मीर कृषि विभाग को यह उमीद है की ऑर्गेनिक खेती कश्मीर में किसानों को नई दशा और दिशा के साथ बुलंदियों तक ले जाएगी.
फसल बीमा योजना में कम रुचि ले रहे हैं यूपी के किसान

फसल बीमा योजना में कम रुचि ले रहे हैं यूपी के किसान

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के किसान फसल बीमा योजना में कम ही रूचि ले रहे हैं। कम्पनियां फसल नुकसान के आंकलन से किसानों को क्षतिपूर्ति देने में मनमानी करती हैं। अभी तक रबी की फसल की क्षतिपूर्ति के 4.87 करोड़ रुपए किसानों को नहीं दिए गए हैं। यही कारण है कि प्रदेश के किसानों का प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर भरोसा लगातार कम होता जा रहा है। भले ही कृषि विभाग किसानों को फसल बीमा योजना के लिए प्रेरित कर रहा है। लेकिन फसल बीमा योजना से किसानों का मोहभंग हो चुका है। राज्य सरकार का मानना है कि इस बार मौसम की विपरीत परिस्थितियों के चलते, किसानों को फसल बीमा योजना में पंजीकरण कराना चाहिए। खरीफ की फसल के लिए बीमा योजना की अंतिम तिथि 31 जुलाई रखी गई है, जिसे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश कृषि विभाग बीमा बढ़ाने के लिए लगातार अपील कर रही है।

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इन परिस्थितियों में किसानों को मिलता है फसल बीमा योजना का लाभ

- किसान की फसल की बुवाई 75 फीसदी से कम रह जाती है। तो किसानों को बीमा का 75 प्रतिशत भुगतान करके बीमा कवर को समाप्त कर दिया जाता है। वहीं अगर फसल समय निकलने के बाद खराब होती है तो भी बीमा का का क्लेम नहीं मिलता है। अगर बुवाई और कटाई के 15 दिन के अंदर फसल पर देवीय आपदा आ जाए, तो नियमानुसार फसल की उपज का 25 प्रतिशत लाभ तत्काल दिया जाएगा। और 15 दिनों में सर्वेक्षण पूरा किया जाएगा। और अतिरिक्त क्षतिपूर्ति का समायोजन खाते में किया जाएगा।

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72 घंटों के अंदर नुकसान की सूचना दर्ज कराएं।

- फसल बीमा कराने वाले किसान अपनी फसल में नुकसान होने के 72 घंटों के अंदर अपनी सूचना दर्ज कराएं। इसकी सूचना टोल फ्री नम्बर या लिखित रूप से कृषि विभाग, बीमा अधिकारियों अथवा राज्य सरकार को दर्ज कराएं।

जलभराव वाली धान की फसल बीमा कवर से हटाई

- धान की फसल जलभराव वाली खेती है। सरकार ने धान की फसल को बीमा कवर योजना से बाहर कर दिया है। क्योंकि धान की फसल में जलभराव के चलते नुकसान की आशंका ज्यादा रहती है।
नक्सलगढ़ के हजारों किसान करने लगे जैविक खेती

नक्सलगढ़ के हजारों किसान करने लगे जैविक खेती

छत्तीसगढ़ में नक्सली क्षेत्र से विख्यात बस्तर खेती-किसानी में भी काफी समृद्ध है। यहां के किसान भी देश के अन्य किसानों की तरह खेतों में रासायनिक खाद का उपयोग करते थे, लेकिन राज्य सरकार के प्रोत्साहन से अति पिछड़े नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र में गिने जाने वाले बस्तर के किसान भी अब जैविक खेती कर रहे हैं। इसके परिणाम स्वरूप सरकार इन्हें प्रोत्साहित करने के लिए २००० रुपए दे रही है। ज्ञात हो कि देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई प्रकार के प्रयास किए जा रहे हैं। कई राज्यों में किसान खुद से प्राकृतिक खेती की तरफ बढ़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में भी काफी संख्या में किसान जैविक खेती करने लगे हैं। जिले में पहली बार इस तरह का प्रयोग किया गया है।


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कई राज्य जैविक खेती को दे रहे बढ़ावा

जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं कि फसलों में कीटनाशक का प्रयोग कितना घातक सिद्ध हो रहा है। यह लोगों में कई बीमारियों का कारण भी बन रहा है। इन सबको देखते हुए कई राज्य सरकारें जैविक खेती को बढ़ावा दे रही हैं। छत्तीसगढ़ में भी प्राकृतिक और जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। सूबे के कई किसान अब जैविक खेती की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। इसके तहत यहां के हजारों किसानों ने परंपरागत रसायनिक खाद वाली खेती को अलविदा कह कर जैविक खेती करने का संकल्प लिया है। बस्तर जिले में प्राकृतिक खेती को लेकर किसानों को रुझान पहली बार इतना अधिक देखने के लिए मिला है।


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अभी तक पांच हजार से अधिक किसान आए आगे

बस्तर में धान के लिए अनुकूल परिस्थितियां होने के कारण सरकार वहां के किसानों को जैविक खेती अपनाने पर ज्यादा फोकस कर रही है। और सरकार की मेहनत भी रंग लाई और जिले के ५ हजार से अधिक किसान जैविक खेती करने के लिए सामने आए हैं। यहां किसान लगभग सात हजार हेक्टेयर जमीन में जैविक खेती कर रहे हैं।

जिले का कृषि विभाग भी किसानों को कर रहा प्रोत्साहित

प्रोत्साहन हर क्षेत्र में एक कारण माध्यम साबित होता है। जब तक व्यक्ति को प्रोत्साहित न किया जाए, वह कोई भी काम को बखूबी अंजाम नहीं दे सकता है। ऐसे में जिले के किसानों को जैविक खेती की ओर प्रोत्साहित करने में, जिले के कृषि विभाग का बड़ा योगदान माना जा रहा है। विभाग किसानों को जैविक खेती करने के लिए लगातार प्रोत्साहित कर रहा है। इसके तहत किसानों को खेती के प्रति हेक्टेयर दो हजार रुपए देने की योजना बनाई है। किसानों को दी जाने वाली यह प्रोत्साहन राशि सीधे उनके खाते में ट्रांसफर की जा रही है। दरअसल जिले में कृषि विभाग द्वारा, राज्य में जैविक खेती मिशन के तहत किसानों को प्राकृतिक खेती करने के लिए जागरूक किया जा रहा है. प्राकृतिक खेती करने के लिए किसानों को प्रशिक्षण भी दिया गया है। ट्रेनिंग के बाद किसानों का कहना है कि वो अब प्राकृतिक खेती ही करेंगे। किसानों को प्राकृतिक करने के लिए कृषि विभाग द्वारा सभी किसानों को हर संभव मदद देने का आश्वसन दिया है।


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जिले में चलाया जा रहा विशेष अभियान

बस्तर जिले में किसानों को जैविक खेती के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए अभी भी विशेष अभियान चलाया जा रहा है। विभाग के उपसंंचालक एसएस सेवता ने कहा कि जिले भर में किसानों को जैविक खेती से जोडऩे के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है, ताकि सभी किसान जैविक खेती की ओर रुख कर सकें। उन्होंने कहा कि जल्द ही राज्य में प्राकृतिक खेती से संबंधित जानकारी दी जाएगी, शुरुआती दौर में जिले के लगभग पांच हजार किसान इस नई पहल का हिस्सा बन गए हैं। इसे प्रोत्साहित करने के लिए किसानों को प्रति हेक्टेयेर दो हजार रुपए की राशि दिए जाने की योजना बनायी गई है। जैविक खेती करने के बहुत सारे फायदे हैं. इसकी खेती से, भूमि से अधिक से अधिक उत्पादन लिया जा सकता है, साथ ही जमीन की उर्वरक क्षमता भी बनी रहेगी।

खाद पर निर्भरता हो रही कम

जैविक खेती का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि किसानों को अब खाद पर निर्भर नहीं होना पड़ रहा है। सरकार द्वारा बनाए गए गौठानों से आसानी से किसानों को खाद उपलब्ध हो जा रही है। वहीं वे खुद भी खाद बनाकर खेती कर पा रहे हैं। इससे उनकी लागत में कमी आ रही है और कमाई भी बढ़ रही है। बाजार में इसके अच्छे दाम भी मिलने लगे हैं।


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जैविक खेती बनी लाभ का धंधा

जैविक खेती करने के सुखद परिणाम भी किसानों ने खुद बयां किए हैं। खुद किसानों का कहना है कि कीटनाशक का लगातार उपयोग करने से उनकी जमीन की उर्वरा शक्ति धीरे-धीरे कम होती जा रही थी, जिससे उत्पादन भी कम घटता जा रहा था। लेकिन जब से उन्होंने जैविक खेती अपनाई है, उनकी जमीन में अचंभित करने वाले परिर्वत देखने को मिल रहे हैं। भूमि की उर्वरा शक्ति तो बढ़ी ही है, साथ ही फसल की पैदावार में भी वृद्धि देखने को मिल रही है, जिस कारण उनकी आय भी एकाएक बढ़ गई है। किसानों का कहना है कि जैविक खेती उनके लिए सभी मायनों में लाभ का धंधा साबित हो रही है।
यूपी के ज्यादातर जिले सूखे की चपेट में लेकिन सूखाग्रस्त नहीं घोषित हुआ प्रदेश

यूपी के ज्यादातर जिले सूखे की चपेट में लेकिन सूखाग्रस्त नहीं घोषित हुआ प्रदेश

भले ही पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश भारी बारिश की चपेट में आकर बाढ़ झेल रहा हो, लेकिन उत्तर प्रदेश राज्य में इस साल बारिश की भारी किल्लत देखने को मिल रही है। अगस्त का महीना विदा लेने को है और उत्तर प्रदेश के कई जिलों में अभी सामान्य से बेहद कम बारिश दर्ज की गई, जिसकी वजह से किसान बेहाल हैं और परिस्थितियां सूखे जैसी हो गई हैं। जब कोई क्षेत्र सूखा घोषित होता है तो उसे सरकार मुआवजा देती है, लेकिन चौंकाने वाली बात है कि सूखे के आंकलन को लेकर सरकारी कागजों में अलग ही खेल चल रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अगर विश्लेषण सही से किया जाए, तो पता चलेगा कि राज्य के 38 ज़िलों में सामान्य से कम बारिश हुई है जिसकी वजह से वहां के ज्यादातर इलाकों में खरीफ की फसलें नहीं बोई गईं। लेकिन जब बात सरकारी अमले की आती है, तो उन्होंने जिलेवार आंकड़े तो तैयार किए हैं लेकिन ये आंकड़े कहानी कुछ और ही बयां कर रहे हैं।

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यूपी कृषि विभाग का कहना है कि इस बार खरीफ की फसल किसानों ने जमकर बोई और रोपी है। आंकड़ों में ये भी कहा गया है कि 98 प्रतिशत भूमि पर बुवाई और रोपाई का काम पूरा हो चुका है। अब इसी बात के चलते उत्तर प्रदेश में सूखे की घोषणा नहीं की गई है जबकि प्रदेश में सूखे जैसे हालात तो हैं ही। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो प्रदेश के 38 जिलों में खरीफ की फसलें बहुत कम बोई या रोपी गई हैं और किसान बदहाल हैं। ऐसे में उन्हें इलाका सूखाग्रस्त घोषित होने से सरकार से कुछ उम्मीदें थीं, लेकिन अब ये उम्मीदें भी खत्म नजर आ रही हैं। यूपी का इटावा जिला कम बारिश होने से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है।

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आलम यह है कि यहां किसान बेहद परेशान हैं। लेकिन सरकारी आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इटावा जिलें में 50 हजार हेक्टेयर में बुवाई और रोपाई की जानी थी, जिसमें से 43 हजार हेक्टेयर में धान की रोपाई हुई है। इसके अलावा रोपाई और बुवाई जिन जिलों में नहीं हुई है उनके नाम गाजीपुर, जौनपुर, प्रयागराज, प्रतापगढ़, मुरादाबाद, सोनभद्र, मऊ, सुल्तानपुर, अमेठी और लखनऊ हैं। बारिश न होने से खेतों में दरारें पड़ गई हैं, जिसकी वजह से सूख चुके धान के खेतों पर कई किसानों ने ट्रैक्टर से जुताई कर दी है। देवरिया के एक किसान ने बताया कि उन्होंने अपने खेत में धान बोई थी, लेकिन जब बारिश नहीं हुई तो मजबूरी में उन्हें धान लगे खेत को ट्रैक्टर से जोतना पड़ा। वैसे तो ज्यादातर जगहों पर किसानों ने बुवाई या रोपाई की ही नहीं थी, लेकिन जहां की गई वहां की फसलें खराब हो गई हैं।

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पंजाब सरकार पराली जलाने से रोकने को ले कर सख्त, कृषि विभाग के कर्मचारियों की छुट्टी रद्द..

पंजाब सरकार पराली जलाने से रोकने को ले कर सख्त, कृषि विभाग के कर्मचारियों की छुट्टी रद्द..

पंजाब के कृषि मंत्री ने पराली जलाने (stubble burning) पर प्रतिबंध को जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए पिछले दिनों अधिकारियों के साथ बैठक की। बैठक के दौरान, उन्होंने अधिकारियों को जमीनी स्तर पर किसानों के साथ मिलकर काम करने की सलाह दी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रतिबंध का ठीक से पालन हो। खेती का सीजन जोरों पर है। आने वाले दिनों में धान की फसल कटाई के लिए तैयार हो जाएगी। बहुत जगह फसल तैयार भी हो चुकी हैं और कटाई शुरू हो चुकी है। इसी कड़ी में पंजाब सरकार ने बहुत ही सक्रिय भूमिका निभाई है। पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए इस बार पंजाब सरकार जमीनी स्तर पर सक्रिय भूमिका निभा रही है और इसको ध्यान मे रखते हुए पंजाब सरकार ने एक उल्लेखनीय निर्णय लिया है जिसमे कृषि विभाग सहित सभी कर्मचारियों की छुट्टी रद्द कर दी है। कृषि मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल (Kuldeep Singh Dhaliwal ने इस बारे में जानकारी साझा की है। ये भी पढ़े: पराली जलाने पर रोक की तैयारी

इस तारीख तक छुट्टी रद्द

पंजाब सरकार ने पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए राज्य के कृषि विभाग के कर्मचारियों की 7 नवंबर तक की छुट्टी रद्द करने का फैसला किया है। दरअसल पंजाब के कृषि मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने बीते रोज पराली जलाने को रोकने के लिए अधिकारियों के साथ बैठक की और जिला स्तर पर क्रियान्वयन करने के लिए इसके रोडमैप पर चर्चा की। मंत्री महोदय ने कहा कि राज्य में पराली जलाने की प्रथा को रोकने के लिए विभिन्न कदम उठाए जा रहे हैं। इन कदमों में शिक्षा और प्रवर्तन भी शामिल हैं। मंत्री ने कृषि विभाग के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को जमीनी स्तर पर ध्यान केंद्रित कर काम करने के लिए कहा। उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे 7 नवंबर तक विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को छुट्टी न दें। कृषि मंत्री ने पराली जलाने को रोकने के लिए जागरूकता अभियान चलाने और सभी गतिविधियों की निगरानी के लिए एक राज्य स्तरीय समिति का गठन किया है। सख्त निर्देश देते हुए मंत्री महोदय ने सेंट्रल कंट्रोल रूम बनाने के भी आदेश दिए हैं। ये भी पढ़े: पराली प्रदूषण से लड़ने के लिए पंजाब और दिल्ली की राज्य सरकार एकजुट हुई दिल्ली-एनसीआर में हर साल सर्दी के मौसम में गंभीर वायु प्रदूषण होता है। प्रदूषण की शुरुआत अक्टूबर महीने से हो जाती है। यह वही समय है जब पंजाब और हरियाणा में किसानों द्वारा पराली जलाया जाता है जो की एक गंभीर समस्या का रूप ले लेता है। हाल के वर्षों में पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए तरह-तरह के प्रयास किए जा रहे हैं जिसमे किसानों को जागरूक भी किया जा रहा हैं। इसी समय दिल्ली एनसीआर में पराली के धुएं से होने वाले प्रदूषण का अनुपात 40% से अधिक दर्ज किया है। खुले में पराली को जलाने से वातावरण में बड़ी मात्रा में हानिकारक प्रदूषक निकलते हैं, जिनमें गैसें भी शामिल हैं जो पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं। ये प्रदूषक को वातावरण में फैलने से रोकना चाहिए क्योंकि ये भौतिक और रासायनिक परिवर्तनों से गुजरते हैं और अंततः धुंध की मोटी चादर बना देते हैं। इससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये भी पढ़े: पंजाब सरकार बनाएगी पराली से खाद—गैस पराली जलाने से बचने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार राष्ट्रीय पराली नीति बनाई है। राज्यों को इसका सख्ती से पालन करने का दिशा निर्देश भी दिया गया है। आज तक, खेतों में पराली को नष्ट करने के लिए कोई प्रभावी और उपयुक्त तरीके और मिशनरी सामने नहीं आए हैं। हैपीसीडर व एसएमएस सिस्टम से प्रणाली भूसे को खेत में मिलाया जा सकता है, लेकिन यह पूरी तरह से ठोस प्रणाली नहीं है जिससे खेत अगली फसल के लिए पूरी तरह से तैयार हो सके। पराली जलाने की समस्या के समाधान के लिए पिछले चार साल में केंद्र सरकार ने पंजाब पर करोड़ों रुपये खर्च किए हैं, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। खेतों में अभी भी बड़ी संख्या में पराली जलाई जा रही है।
बिहार में खाद की भयंकर कमी, मांग के मुकाबले यूरिया की आपूर्ति में 22 फीसदी की कमी

बिहार में खाद की भयंकर कमी, मांग के मुकाबले यूरिया की आपूर्ति में 22 फीसदी की कमी

1 अप्रैल से 12 सितंबर के बीच, बिहार सरकार को बिहार कृषि विभाग से जानकारी मिली कि बिहार को खरीफ सीजन के लिए 10,100 मीट्रिक टन खाद की जरूरत है। लेकिन आंकड़ों के मुताबिक अब तक केंद्र सरकार ने सिर्फ 7.89576 मीट्रिक टन खाद की आपूर्ति की है। खरीफ फसल का मौसम चल रहा है। खरीफ मौसम की मुख्य फसल धान देशभर में उगाई जाती है। वहीं, इस सीजन में खाद की मांग सबसे ज्यादा होती है। बिहार में इस खरीफ सीजन में खाद की आपूर्ति नही होना किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या है। इससे किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार ने बिहार को खरीफ सीजन के दौरान पिछले सालों की तुलना में यूरिया का आबंटन बहुत ही कम किया है। बिहार सरकार के अनुसार, केंद्र सरकार ने पीक सीजन (जून से अगस्त) के दौरान उपयोग के लिए आबंटित यूरिया की मात्रा को 22 फ़ीसदी कम कर दिया है।

इतने खाद की है आवश्यकता

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बिहार को खरीफ सीजन 1 अप्रैल से 12 सितंबर तक 10.100 मीट्रिक टन खाद की जरूरत थी। केंद्र सरकार ने इस वर्ष अब तक 7.89576 मीट्रिक टन खाद की आपूर्ति की है, जो आवश्यकता अनुपात का 78% है। ये भी पढ़े: डीएपी जमाखोरी में जुटे कई लोग, बुवाई के समय खाद की किल्लत होना तय बिहार सरकार द्वारा सार्वजनिक किए गए आंकड़ों के अनुसार जून में 1.20 लाख मीट्रिक टन की आवश्यकता के मुकाबले 1.03 लाख मीट्रिक टन खाद दी गई. इसी प्रकार जुलाई में  2.50 लाख मीट्रिक टन की आवश्यकता थी, लेकिन जुलाई में 1.72 लाख मीट्रिक टन खाद की आपूर्ति की गई, और अगस्त में 2.80 लाख मीट्रिक टन की आवश्यकता के मुकाबले 2.51 लाख मीट्रिक टन की आपूर्ति की गई। पिछले खरीफ सीजन के दौरान भी कम आपूर्ति देखी गई थी। पिछले खरीफ सीजन में बिहार सहित कई क्षेत्रों में उर्वरक की भारी किल्लत थी। इसके चलते किसानों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। उस वक्त भी बिहार के लिए जरूरी यूरिया का महज 77 फीसदी ही मुहैया कराया गया था। ये भी पढ़े: इफको ने देश भर के किसानों के लिए एनपी उर्वरक की कीमत में कमी की बिहार के दौरे के दौरान, केंद्रीय उर्वरक राज्य मंत्री भगवंत खुबा ने नीतीश कुमार पर केंद्र से लगातार और पर्याप्त शिपमेंट के बावजूद उर्वरक की कमी का नाटक करने का आरोप लगाया है। उर्वरक राज्य मंत्री ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा की नीतीश कुमार को किसानों को गुमराह करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, किसानों के लिए नरेंद्र मोदी की सरकार ने हमेशा कार्य किया है। किसानों से अनुरोध करते हुए उन्होंने कहा की वे यूरिया खरीदारी पर दर से अधिक पैसा न दें, क्योंकि नरेंद्र मोदी की सरकार किसानों की खातिर यूरिया, डीएपी, एनपीके और अन्य कृषि आदानों पर भारी सब्सिडी दे रही है। मंत्री जी ने ये भी कहा कि सरकार को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किसानों को निशाना नहीं बनाना चाहिए। प्रशासकों को किसानों को सब्सिडी वाले उर्वरकों के उपयोग के उनके अधिकार के बारे में सूचित करने के लिए निर्देश भी दिए जाते हैं। ये भी पढ़े: डीएपी के लिए मारामारी,जानिए क्या है समाधान वही वर्तमान समय में उर्वरक की भारी कमी और इसकी बढ़ती कालाबाजारी और अवैध रूप से बिक्री के कारण पूरे बिहार के किसान चिंतित और आक्रोशित हैं।
बिहार में मशरूम की खेती करने पर सरकार दे रही 90 फीसदी अनुदान

बिहार में मशरूम की खेती करने पर सरकार दे रही 90 फीसदी अनुदान

पटना। मशरूम यानी कुकुरमुत्ता (कवक - Mushroom) की खेती को बढ़ावा देने के लिए बिहार सरकार ने बड़ा एलान किया है। बिहार सरकार ने राज्य के किसानों को मशरूम की खेती करने पर 90 फीसदी तक अनुदान देने की घोषणा की है। अभी तक बिहार में किसान परम्परागत खेती ही करते रहे हैं। लेकिन इस बार मशरूम की खेती की ओर किसानों का ध्यान आकर्षित करने के लिए सरकार ने एक अच्छी मुहिम शुरू की है। इस साल मशरूम की खेती पर 90 फीसदी तक अनुदान देकर सरकार मशरूम की खेती पर जोर दे रही है।

मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना से मिलेगा अनुदान

बिहार सरकार मशरूम की खेती करने वाले किसानों को 'मुख्यमंत्री बागवानी मिशन' के तहत 90 फीसदी तक अनुदान दे रही है। योजना में शामिल होने के लिए किसानों से आवेदन मांगे जा रहे हैं, किसानों में भी इस योजना को लेकर खासा उत्साह दिखाई दे रहा है। ये भी पढ़े: मशरूम के इस मॉडल से खड़ा किया 50 लाख का व्यवसाय

खगरिया जिले में 500 किसान कर रहे हैं मशरूम की खेती

बिहार में अभी तक खगरिया जिले में तकरीबन 500 किसान मशरूम की खेती कर रहे हैं। सरकार द्वारा मशरूम की खेती पर प्रोत्साहन राशि मिलने के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि मशरूम की खेती करने वाले किसानों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हो सकती है।

झोंपड़ी में मशरूम की खेती से किसान की आमदनी होगी दोगुनी

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत झोंपडी में मशरूम की खेती करने वाले किसानों की आमदनी दोगुनी हो सकती है। इस योजना के तहत किसानों को अलग से 50 फीसदी तक अनुदान दिया जा रहा है। झोंपड़ी बनाने से लेकर मशरूम की खेती करने तक आने वाली लागत पर 50 फीसदी अनुदान देने का प्रावधान रखा गया है, इस कुल लागत का 50 प्रतिशत खर्च यानि 20 लाख रुपए की लागत में 10 लाख रुपये सब्सिडी के रूप में राज्य सरकार वहन करेगी और शेष धनराशि किसान को लगानी होगी।

मशरूम पर अनुदान के लिए ऐसे करें आवेदन

मुख्यमंत्री बागवानी विकास मिशन के तहत मशरूम की खेती पर सब्सिडी का लाभ लेने के लिए बिहार कृषि विभाग, उद्यान निदेशालय की आधिकारिक वेबसाइट http://horticulture.bihar.gov.in/ पर आवेदन कर सकते हैं। अगर किसान चाहें तो इस योजना से संबंधित अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए अपने नजदीकी जिले के उद्यान विभाग कार्यालय में जाकर सहायक निदेशक से भी संपर्क किया जा सकता है।
जानें क्या रहेगा आने वाले पांच दिनों में मथुरा का मौसम, क्या सावधानी बरतें किसान

जानें क्या रहेगा आने वाले पांच दिनों में मथुरा का मौसम, क्या सावधानी बरतें किसान

भारतीय मौसम विभाग से प्राप्त मौसम के पूर्वानुमान के अनुसार मथुरा में अगले पांच दिनों में हल्के बादल छाये रहेंगे और बारिश की कोई सम्भावना नहीं है। अधिकतम तापमान ३२ - ३६ और न्यूनतम तापमान २४ - २६ डिग्री सेल्सियस के बीच है। सापेक्षिक आद्रता (relative humidity) अधिकतम और न्यूनतम सीमा ६६-७७ और ३६-४२% के बीच है। हवा की दिशा उत्तर से पश्चिम और हवाओं की गति ६ - १३ किमी प्रति घंटे चलने की सम्भावना है। हालाँकि कुछ दिन पूर्व, उत्तर प्रदेश के कई जिलों में अत्यधिक बारिश के चलते किसानों की पूरी फसल को ही जलमग्न कर दिया, जिससे किसानों को बहुत हानि हुई है। इस सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश कृषि विभाग ने किसानों को कुछ महत्वपूर्ण निर्देश दिए, जिसमें उन्होंने कहा कि अत्यधिक जलभराव की हालत में किसान मेड़ काटकर पानी को अन्य किसी रास्ते से बाहर निकाल दें।

कृषि विभाग के विशेषज्ञों ने किसानों के लिए कुछ सलाहें दीं

खरीफ की परिपक़्व फसलों की कटाई एवं मड़ाई के लिए मौसम अनुकूल है तथा खाली खेतों में, रबी की बोई जाने वाली फसलें जैसे - तोरिया, आलू, चना, मटर और मसूर आदि की बुवाई के लिए खेतों की तैयारी करें।

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हवा की विपरीत दिशा में खड़े होकर कीटनाशकों, रोगनाशी और खरपतवार नाशकों का स्प्रे न करें। छिड़काव शाम को ही किया जाना चाहिए, साथ ही एतिहात बरतते हुए हाथों को अच्छी तरह धोना अति आवश्यक है।

पशुओं से सम्बंधित क्या सलाह दी गयी है ?

पशुओं से सम्बंधित यह सलाह दी गयी है कि किसान, गर्भवती गायों एवं भैंसों को ढलान वाले स्थान पर न बांधें। साथ ही उनको पौष्टिक चारा एवं दाना खिलाएं तथा नवजात बच्चे को तीन दिन तक खिस अवश्य पिलायें। पशुओं को साफ़ सुधरे स्थान पर रखें व मक्खी और मच्छरों से उनका बचाव करें। आजकल लम्पी स्किन डिजीज जैसे संक्रामक रोग पशुओं को अपनी चपेट में ले रहें हैं, इस वजह से किसान व पशुपालकों को अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है।

बागवानी के सन्दर्भ में क्या-क्या मुख्य सलाह दी हैं ?

आलू की अगेती किस्म कुफरी अशोका, कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी जवाहर आदि की बुवाई के लिए खाद एवं बीज की व्यवस्था करें तथा बुवाई का कार्य करें।

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पत्तागोभी एवं फूलगोभी की नर्सरी डालें तथा तैयार पौध की रोपाई करें। सब्जी, मटर, मूली, शलजम, पालक, सोया एवं मेंथी की बुवाई प्रारम्भ करें। आम में पत्ती काटने वाले कीट की रोकथाम हेतु २ % कार्बरिल १.५ % धूल का बुरकाव करें।
इस सरकारी योजना में मिलता है गजब का फायदा, 50% तक का मिलता है किसानों को अनुदान

इस सरकारी योजना में मिलता है गजब का फायदा, 50% तक का मिलता है किसानों को अनुदान

किसानों को इस योजना से गजब का फायदा मिलता है। जो किसान सिंचाई कि समस्या से परेशान है उनके लिए यह योजना बड़ा ही कारगर साबित होने वाला है। केंद्र और राज्य सरकार द्वारा इस योजना के माध्यम से किसानों के सिंचाई की समस्या से समाधान निकालने के लिए जोर दिया जा रहा है। पूरे भारतवर्ष में कृषि के मामले में किसानों को बेहतर मुनाफा अर्जित करने के लिए सरकार द्वारा लगता नए-नए योजनाओं को धरातल पर लागू कराने के लिए प्रयास किया जा रहा है। सरकार किसानों के बेहतर भविष्य के लिए चिंतित है। सरकार ने किसानों के सिंचाई को समस्या को देखते हुए इस योजना का शुभारंभ किया है। इस योजना का नाम खेत तालाब योजना (Khet Talab Yojna; Farm Pond Scheme) है। खेत तालाब योजना के माध्यम से किसानों को सिंचाई के समस्या से वंचित कराना है। खेती करने के लिए किसान को जल की आवश्यकता होती है। जल के द्वारा ही उगाए जा रहे फसलों की सिंचाई की जाती है। बहुत सारे किसान सिंचाई के लिए आवश्यक जल का उपयोग ट्यूबवेल और अन्य साधनों से करते हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार किसानों के लिए खेत तालाब योजना लाकर के किसानों को सिंचाई की समस्या से उबारने का भरपूर प्रयास कर रही है।

क्या है खेत तालाब योजना

इस योजना के अंतर्गत किसानों के खेतों में एक छोटे से भाग में तालाब का निर्माण कराया जा रहा है, जिसमें बारिश के पानी को एकत्रित किया जाएगा, इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को सिंचाई के समस्या से उबारना है। खेतिहर जमीन में तालाब निर्माण के लिए किसानों को अनुदान भी दिया जाता है, अपने जमीन के भूभाग में किसान तालाब का निर्माण करा करके इसमें
मछली का पालन भी कर सकते हैं। इससे किसानों को सिंचाई की समस्या से वंचित होने के साथ-साथ ट्यूबवेल में लगने वाली किसानों की लागत भी कम हो जाती है। [embed]https://twitter.com/UPGovt/status/1285431902313144320[/embed]


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सरकार के द्वारा दिया जाता है इतना प्रतिशत का अनुदान

इस योजना का सबसे बेहतर फायदा यह है कि सरकार के द्वारा 50% अनुदान दिया जाता है, यानी आपके लागत का आधा सरकार खुद आपको देती है। खेतिहर जमीन में तालाब बनाने के लिए लगभग ₹100000 का खर्चा आता है, जिसमें ₹50000 इस योजना के अंतर्गत सरकार के द्वारा आपको तालाब के निर्माण के लिए मिल सकता है। अगर आप इस योजना का लाभ लेना चाहते है तब। वही बड़े तालाब के निर्माण के लिए 2 से ढाई लाख रुपए का खर्चा आता है, जिसमें आधी रकम सरकार के द्वारा आप को अनुदान के रूप में दिया जाता है। अभी तक उत्तर प्रदेश के सरकार ने इस योजना के अंतर्गत लगभग दो हजार से ज्यादा तालाबों का निर्माण करवाया है। जिसमें 50 प्रतिशत की राशि सरकार के द्वारा किसानों को तालाब निर्माण के लिए अनुदान के रूप में दिया गया है।

खेत तालाब योजना से किसानों को मिलेंगे ये लाभ :

यह योजना किसानों के लिए बहुत ही लाभप्रद है। खेत तालाब योजना का किसान अगर लाभ लेते हैं, तो इससे सबसे बेहतर फायदा यह है कि जल संरक्षण को पूर्ण रूप से बढ़ावा मिलेगा। किसानों को सच्चाई की समस्या जो उत्पन्न होती है, उसका निवारण अपने ही जमीन में निर्माण कराए गए तालाब के द्वारा आसानी से हो जाएगा। साथ ही साथ किसान को एक बेहतर फायदा यह मिलेगा कि निर्माण कराए गए तालाब में वह मछली का पालन आसानी से कर पाएंगे और उससे भी मुनाफा अर्जित करने में सक्षम हो पाएंगे। इस योजना का लाभ लेने के लिए किसानों के लिए तत्काल ऑनलाइन अप्लाई करने की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। अब किसानों को इस योजना का लाभ लेने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने नहीं पड़ेंगे। इस योजना का लाभ लेने के लिए सबसे पहले आपको उत्तर प्रदेश का स्थाई निवासी होना अनिवार्य माना गया है। वहीं दूसरी तरफ अगर आप पहले से ही किसी तालाब योजना का लाभ ले रहे हैं, तो इस योजना का लाभ आपको प्राप्त नही होगा। अगर आप एक रजिस्टर्ड किसान है तो इस योजना का लाभ ले पाएंगे। अब अगर आप इस योजना का लाभ लेना चाहते है और सिंचाई की समस्या से वंचित होकर उगाए गए फसलों पर अधिक लाभ कमाना चाहते है, तो आपको जल्द ही इसे ऑनलाइन अप्लाई करना चाहिए। इसके लिए उपयुक्त दस्तावेज होना अनिवार्य है, जिसमें जाति प्रमाण पत्र आधार कार्ड बैंक खाते का विवरण स्थानीय निवास प्रमाण पत्र मोबाइल नंबर और खाते का दस्तावेज होना अनिवार्य माना गया है। खेत तालाब योजना आवेदन के लिए आप यूपी कृषि विभाग पारदर्शी किसान सेवा योजना की वेबसाइट पर जाएँ:  https://upagripardarshi.gov.in/Index-hi.aspx पारदर्शी सेवा वेबसाइट के होम पेज पर आप उपर मीनू में " योजनायें > मुद्रा एवं जल सरंक्षण > राज्य प्रायोजित विकल्प " पर क्लिक करें। तो देर ना करें जल्दी इस योजना का लाभ लेने के लिए ऑनलाइन अप्लाई करें और इस योजना का बेहतर लाभ ले करके अपने आय को खेती के माध्यम से दुगुना करें।
इच्छुक किसान इस तारीख से पहले करें आवेदन, मिलेगा 1 लाख रुपए का इनाम

इच्छुक किसान इस तारीख से पहले करें आवेदन, मिलेगा 1 लाख रुपए का इनाम

जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार लगातार अलग अलग तरह से किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। केंद्र व राज्य सरकार अलग अलग योजनाओं के तहत किसानों को भिन्न-भिन्न प्रकार की सहूलियत व सब्सिडी देकर जैविक खेती को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही है। अलग अलग राज्यों में अलग अलग तरह का प्रोत्साहन किसानों को दिया जा रहा है। इसी कड़ी में राजस्थान सरकार ने बड़े स्तर पर किसानों को जैविक खेती से जोड़ने के लिए तीन किसानों को सर्वश्रेष्ठ अवार्ड देने का ऐलान भी किया गया है।

किस तरीके के किसान होंगे इस योजना के लिए पात्र

राजस्थान कृषि विभाग के उपनिदेशक डॉ गुण राम मटोरिया बताते हैं, कि किसान, जो पांच वर्षों से कृषि उद्यानिकी फसलों में जैविक तरीके से उत्पादन कर रहे हो तथा पिछले दो वर्षों से उनके जैविक उत्पादों का प्रमाणीकरण हो रहा हो। वैसे किसान इस योजना के लिए पात्र होंगे या उनको इस योजना के पात्रता में वरीयता दी जाएगी। इतना ही नहीं है, इसके पात्रता के लिए मटोरिया बताते हैं, कि जिन किसानों के खेत में जैविक खेती के लिए वर्मी कम्पोस्ट इकाई हो या स्वयं के द्वारा तैयार किए गए जैव कीटनाशक, जैव उर्वरक का उपयोग कर फसल उगाते हों। इसके अलावा जो भी किसान जैविक खेती संबंधी कोई नया प्रयोग करता हो या फिर राजकीय संस्थान से प्रमाणित हो वह किसान भी इस अवार्ड के लिए पात्र माने जाएंगे।


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कितने किसानों का होगा चयन

गौरतलब है, कि इस अवॉर्ड के लिए इच्छुक किसान 10 दिसंबर तक आवेदन कर पाएंगे। उनके आवेदन के बाद जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक टीम गठित की जाएगी जो जिले स्तर पर मिलने वाले आवेदन को देख कर एक किसान का चयन करेंगे। अलग अलग जिलों से इस अवॉर्ड के लिए तीन किसानों का चयन किया जाएगा। चयनित किसानों को एक-एक लाख का नकद इनाम भी दिया जाएगा।

जैविक खेती से है कई फायदे

राज्य व केंद्र सरकार जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए नए-नए तकनीक ले कर आ रही है, जिससे किसान भी लाभान्वित हो रहे हैं। यह जानकर आश्चर्य होगा कि किसानों के द्वारा लगातार रासायनिक खाद का प्रयोग करने से मिट्टी की उर्वरक शक्ति कम हो जाती है। जिससे किसानों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। रासायनिक खाद के प्रयोग से उगाई गयी सब्जी व फल खाने के बाद लोगों को कई बीमारी से भी गुजरना पड़ रहा है। इसलिए केंद्र व राज्य सरकार किसान व आम लोगों के स्वास्थ्य को देखते हुए जैविक खेती पर काफी जोर दे रही है और इस प्रकार के कई प्रोत्साहन भी किसानों को दे रही है। जिससे किसान का जैविक खेती की तरफ रुझान बढ़ सके।